गुफ़्तगू अभिज्ञान प्रकाश के साथ…

प्र. जर्नलिज्म की दुनिया में आप कैसे आए ?

उ. पहले मैं एक एड कंपनी के लिए कॉपी राइटर था, फिर मैने संगीत समीक्षक के तौर पर आर्टिकल लिखना शुरू किया और फिर मैं टीवी की दुनिया में आया और आज लगभग 20 साल हो गए हैं।

प्र. आज के सन्दर्भ में पत्रकारिता क्या है ?
उ. आज की पत्रकारिता मुझे समझ नही आती। कौन सी हिंदी बोली जा रही है, क्या हिंदी बोली जा रही है कुछ समझ नही आता। मैं तो ये खिड़की सेशन के बिल्कुल खिलाफ हूँ , इसका न तो कोई निष्कर्ष है न मतलब।

प्र. क्या पत्रकारिता बाजारू हो चुकी है ?                                                                                     उ. आज के वक़्त में पत्रकारिता पर मार्किट प्रेशर है, लोगो को ये समझना होगा। चूँकि ये पूरी तरह प्राइवेट इंडस्ट्री है तो ज़ाहिर है की ये अपने रेवेन्यू के लिए भी काम करेगा हालाँकि 80`s के सिनेमा की तरह इसे भी लोग भूल जायेंगे लेकिन इसका भविष्य युवायों को तय करना है।

प्र. आज की पत्रकारिता और पिछले दशकों की पत्रकारिता में क्या अंतर आया है ?

उ. जी हाँ , एक अंतर जो सबसे बड़ा मुझे दिखाई देता है वो है पत्रकारों के प्रति सम्मान का कम  होना। मैने वो दौर भी देखा है जब झोला लिये और कुर्ता पहने पत्रकार की इज़्ज़त थी पर आज हर कोई ये समझने लगा है की पत्रकारों को खरीदा जा सकता है, ख़बरों को अपने मन मुताबिक इन पत्रकारों के माध्यम से दिखाया जा सकता है जो हक़ीक़त में नही है।

प्र. पत्रकारिकता की प्रमुख समस्या क्या है ?
उ. मेरे ख़्याल से इसको जो आर्थिक द्रष्टिकोण मिलना चाहिए था वो नही मिला तो जो व्यवसाय कर रहे हैं उनको तो व्यवसाय चलाना है। इसलिए अब इसमें संतुलन बैठना मुश्किल होता जा रहा है।

प्र. पत्रकारिता में आने वाले नए लोगों को क्या सन्देश देते हैं ?
उ. अगर आप ये सोच के आते हैं की मुझे T.V पर आना है या एंकर बनना है तो ये फील्ड आप के लिए नही है आपको कोई और फील्ड देखनी चाहिए ।

प्र. आप द्विभाषी पत्रकार हैं, किस भाषा में आप काम करना पसंद करते हैं ?
उ. मूलतः मैने इंग्लिश में ही काम किया है, लेकिन मेरी पृष्ठ भूमि संगीत और साहित्य की रही है मेरी माँ लेखिका थीं, मैंने खुद 18 साल लखनऊ और बनारस घराने से तबला सीखा है तो मुझे अपनी मातृभाषा से लगाव है इसलिए मैंने फिर हिंदी को चुना।

प्र. आप को हिंदी भाषा में काम करने पर अफ़सोस क्यों है ?
उ. भाषा का जो स्तर आज कल इस्तेमाल हो रहा है उसको लेकर भी और अभी एक कार्यक्रम में अशोक चक्रधर और राहुल देव मेरे साथ थे तो वो भी इस बात को रख रहे थे की कौन सी हिंदी लिखी जा रही है कौन सी बोली जा रही है इसलिए सीधे तौर पर मुझे अफ़सोस है।

प्र.आप की दिनचर्या क्या है ?
उ. ऐसी कुछ ख़ास नही है हाँ एक पुरानी आदत है जिसकी वजह से दिन देर से शुरू होता है, कम से कम 14-15 अखबार मैं देखता हूँ उसी की वजह से मुझे कभी अपने कार्यक्रम के लिए ज्यादा तैयारी की जरूरत नही पड़ी।

प्र. आपकी सफलता क्या है ?                                                                                                 उ. मेरे मायने सफलता को लेकर अलग हैं और न ही मैं इसे कुछ मानता आपको आपके काम से संतुष्टि मिलनी चाहिए लेकिन आज के सन्दर्भ में सफलता का मतलब T.R.P कमाने से होता है।

प्र. वर्तमान समय में जो कश्मीर को लेके पाकिस्तान और भारत के जो मसले हैं उसमे आप अपनी क्या राय रखेंगे ?
उ. आप ग़लत आदमी से ये सवाल पूछ रहे हैं कृपया आप ये सवाल नरेंद्र मोदी से पूछिए, मैं इस पर अपनी कोई राय नही देना चाहता।

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