गुरु

आन्नद हो अनंत हो 
तुम्ही मूल का मन्त्र हो

यत्र हो तत्र हो 

तुम्ही सम्पूर्ण सर्वत्र हो 

तुम्ही से था तुम्ही से है 

तुम्ही से जीवंत शुरू 

काल दस्तक दे रहा 

परीक्षा तमाम ले रहा 

व्यर्थ चिंतित क्यों रहूँ 

पीछे खड़े हो जब गुरु 

इतना प्रसाद कीजिए

अपना आशीर्वाद दीजिए

काल के क्षेत्र में युद्ध वीभत्स हो रहा

अकेला जान मुझको ये स्वंय मुग्ध खूब हो रहा 

जीवन निचोड़ गुरु एक बज्र मुझको दीजिये 

काल को काल का काल दिखाकर विजय निश्चित मेरी कीजिए


कमल मिश्रा

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