क़ातिल बेगुनाह होना चाहिए या मेरा मेहबूब ?

कातिल बेगुनाह होना चाहिए या मेरा मेहबूब ?
अब तक न पर्दा ये फाश हुआ है
खूनी ख़ंजर को छोड़ो वो बता देगा दास्ताँ

यहाँ कोई जीते जी लाश हुआ है
क़त्ल कर क़ातिल ने कमाल कर दिया
दिलाकर दो गज ज़मीन या बना कर राख उसको

फ़िज़ाओं के नाम कर दिया

इधर, इनाम तो छोड़ो लेकर अधूरे ख़्वाब,

ख्वाहिशें, तसल्ली और तजुर्बे
मेरे मेहबूब ने दर्द-ए-ग़म ख़ास दिया है
क़ातिल के इस कारनामे पर भी,

कर ज़लील उसको सरे बाजार किया है
और लगा कर मेंहदी हाथों पर मेरे क़ातिल को
किसी और के क़त्ल के लिया तैयार किया है


कमल मिश्रा

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