अखण्ड भारत…

कश्मीर भारत माँ के माथे का ग़ुरूर है

यही इसकी आबरू और माँग का सिन्दूर है
उठा सकते हो तो उठा लो दुश्मनो दर्जनों हथियार

मगर ये याद रखो …
क्या गा रहा इसका इतिहास ये भी पड़ना ज़रूर है

जब मेरी माँ की छाती पे अनगिन अत्याचार हुए
तब तुम कहाँ थे ? जब सिर्फ हम ही मरहम को तैयार हुए

मांगते हो किस हक़ से क्या कभी किसी ने माँ को बेचा है
ये जन्नत-ए-कश्मीर इसलिए हमारा नहीं कि

कुछ भेड़ियों से हमने इसको जीता है

इसको हथियारों से नहीं रक्त की आखिरी बूँद से सींचा है
यही हमारी सावित्री, यही हमारी सीता है
इसके जर्रे-जर्रे में अध्यात्म दिखाई देता है
हर वादियों की आबो-हवा में अखण्ड भारत  सुनाई देता है


कमल मिश्रा

ये दुनिया जान ले, पहचान ले और मान ले की हम सब एक हैं !

 

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